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लोहड़ी का महत्व और उसके पीछे की परंपरा और इतिहास

लोहड़ी का महत्व और उसके पीछे की परंपरा और इतिहास

भारतीय संस्कृति में हर एक त्यौहार मनाने के पीछे बहुत बड़ी कहानी या तो रहस्य होता है। इसी प्रकार सिख धर्म में मनाए जाने वाला सबसे बड़ा त्यौहार लोहड़ी मनाने के पीछे भी कारण है। हर साल लोहड़ी 13 जनवरी, यानी मकर संक्रांति से एक दिन पहले बड़े हर्षोउल्लास से मनाया जाता है। सिखों के लिए यह बहुत खास पर्व है। लोहड़ी केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह कृषि समाज की मेहनत, एकता, और खुशहाली का प्रतीक है। यह पर्व मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली जैसे क्षेत्रों में मनाया जाता है, लेकिन इसकी गूँज आज पूरे भारत में सुनाई देती है। असल में लोहड़ी के पर्व को मुख्य रूप से नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है, माना जाता है कि इस दिन से ही ठंड का प्रकोप कम और रातें छोटी होने लगती हैं, साथ ही दिन लंबे। इस दिन सूर्यदेव और अग्निदेव की पूजा की जाती है, और अच्छी फसल की कामना करते हुए, ईश्वर का आभार व्यक्त किया जाता है।

 

लोहड़ी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व:

लोहड़ी की कहानी एक ऐतिहासिक और धार्मिक कथाओं से जुड़ी है।

 

1. दुल्ला भट्टी की कथा:
लोकथाओं के अनुसार, दुल्ला भट्टी नामक एक वीर ने मुग़ल काल में गरीब लड़कियों को अत्याचार से बचाया, जब संदल बार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था, वहीं एक दिन दुल्ला भट्टी ने इन्हीं अमीर सौदागरों से लड़कियों को छुड़वा कर उनकी शादी हिंदू लड़कों से करवाई थी। उनकी बहादुरी और परोपकार को आज भी लोहड़ी गीतों में गाया जाता है।     

2. सूर्य देव की पूजा:
लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाई जाती है, जब सूर्य उत्तरायण होता है। यह समय नई ऊर्जा चक्र और प्रकृति में बदलाव का प्रतीक है, इसीलिए लोहड़ी के अवसर पर सूर्य देव की पूजा आराधना की जाती है।

3. कृषि और फसल का उत्सव:
लोहड़ी किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह रबी की फसल, जैसे गेहूं और गन्ने, के कटाई का प्रतीक है। फसल की सफलता और समृद्धि के लिए किसान इस दिन प्रकृति और अग्नि का आभार व्यक्त करते हैं।

 

ये भी पढ़े :- मकर संक्रांति से जुड़े वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व

 

लोहड़ी की परंपराएं और रीति-रिवाज:

1. अग्नि प्रज्वलन और परिक्रमा:
लोहड़ी की रात खुले स्थान पर लकड़ी, गोबर के उपले और गन्ने की सूखी पत्तियां से आग जलाते हैं। इसे पवित्र अग्नि माना जाता है। इसमें गुड़, रेवड़ी, मूंगफली, और मक्का चढ़ाया जाता है। अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करते हुए 'सुंदर मुंदरिये' जैसे लोकगीत गाए जाते हैं।

2. लोक नृत्य और पारंपरिक भोजन:
इस त्योहार में गिद्दा और भंगड़ा जैसे पारंपरिक नृत्य और गीतों का विशेष महत्व है। लोग ढोल और ढमाल के साथ पूरे दिन उत्सव मनाते हैं। लोहड़ी के दिन विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं। इसमें तिल के लड्डू, मूंगफली, मक्के की रोटी, सरसों का साग मुख्य रूप से खाया जाता है।

 

उत्तरी भारत में नवविवाहित जोड़ों के लिए क्यों खास होती है लोहड़ी?

उत्तरी भारत में, खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान और दिल्ली में लोहड़ी, नई-नई शादी हुए जोड़ों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। शादी के बाद यह उनका पहला बड़ा त्यौहार होता है, जिसे परिवार और समाज के साथ मिलकर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन परिवार नवविवाहित दंपति के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करता है। विशेष रूप से बहु के स्वागत के लिए यह दिन बहुत खास होता है। घर के बड़े-बुजुर्ग अग्नि प्रज्वलित करके उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाते हैं और दंपति की खुशहाली की कामना करते हैं। इस दिन जोड़ों को उपहार दिए जाते हैं, जिनमें कपड़े, गहने और मिठाइयाँ शामिल होती हैं। उनके लिए यह दिन इसलिए भी खास होता है, क्योंकि इसमें समाज और परिवार के सभी लोग शामिल होते हैं, जिससे उनके नए रिश्ते मजबूत होते हैं।

 

लोहड़ी का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:

1. एकता और सामूहिकता:
लोहड़ी का त्यौहार समाज में एकता और भाईचारे का संदेश देता है। इस दिन लोग जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर एक साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं।

2. प्रकृति से जुड़ाव:
यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और उसे संरक्षित करने का संदेश देता है। किसानों की मेहनत और प्रकृति का योगदान इसमें प्रमुख है।

3. आधुनिक समय में लोहड़ी:
आज के समय में, लोहड़ी ग्रामीण इलाकों से निकलकर शहरी समाज का भी हिस्सा बन गई है। अब यह सिर्फ किसानों तक सीमित नहीं, बल्कि देश-विदेशों में भी इसके महत्व की चर्चा होती है।

 

लोहड़ी मनाने के पीछे की कहानी 

लोहड़ी मनाने के पीछे की प्रमुख कहानी है, सती और शिव की। सती शिव जी की पत्नी थी, और राजा दक्ष की पुत्री। राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती ने अपने पिता से इस अपमान का कारण पूछा, लेकिन राजा दक्ष ने उनको कुछ जवाब नहीं दिया। इस अपमान को सहन न कर पाने के कारण, सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने वीरभद्र को भेजा, जिसने राजा दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इस घटना के बाद से लोग अग्नि की पूजा करने लगे और लोहड़ी पर्व मनाने लगे।
इसीलिए लोहड़ी केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपराओं और प्रकृति से जुड़े रहने का प्रतीक है। यह हमें प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने, परिवार और समाज को जोड़ने और खुशियां बांटने की प्रेरणा देता है। इस लोहड़ी पर हमें अपनी परंपरा को सहजते हुए पर्यावरण की रक्षा का भी प्रण लेना चाहिए।

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