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Child Marriage : सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर करीब 7 साल बाद सुनाया बड़ा फैसला

Child Marriage : सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर करीब 7 साल बाद सुनाया बड़ा फैसला

Child Marriage : सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने बाल विवाह निषेध कानून को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। आज शुक्रवार को बाल विवाह निषेध कानून और पर्सनल लॉ (Personal Law) से जुड़े एक मामले पर फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह के खिलाफ बने कानून को पर्नसल लॉ के जरिए बाधित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह, जीवन साथी अपनी इच्छा से चुनने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ ने बाल विवाह रोकने के लिए देश में बने कानून (Child Marriage Prohibition Law) को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए।

 

बाल विवाह के मामले में दोषियों को कड़ी सजा दिलाने पर हो जोर

अपने फैसले में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाल विवाहों को रोकने के लिए बनाए गए कानून को पर्सनल कानूनों के जरिए बाधित या रोका नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा के साथ ही दोषियों को कड़ी सजा दिलाने पर जोर देना चाहिए, ताकि ऐसे मामलों में कमी लाई जा सके। हालांकि अपने फैसले में पीठ ने मौजूदा बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां होने की बात भी कही।

 

साल 2006 में लागू हुआ था बाल विवाह निषेध का नया कानून

बता दें बाल विवाह निषेध कानून, 2006 देश में बाल विवाह रोकने के लिए लागू किया गया था। साल 1929 में यानी कि आजादी से पहले से देश में ये कानून मौजूद है। बाद में साल 2006 में तत्कालीन सरकार ने इस कानून में बदलाव कर बाल विवाह निषेध कानून 2006 लागू किया। पीठ ने कहा कि ऐसी कोशिश की जानी चाहिए कि अलग-अलग समुदायों के लिए कानून में लचीलापन रहे। कोई कानून तभी सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है, जब उसमें विभिन्न पक्षों का समन्वय और सहयोग हो। इसके लिए जांच अधिकारियों को प्रशिक्षित करने और नए तौर तरीके सिखाने की जरूरत है।

 

बाल विवाह रोकने के लिए समाज में जागरूकता लाने की जरूरत- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए समाज में जागरुकता फैलाने की जरूरत है। इस कानून में सिर्फ सजा का प्रावधान करने से कुछ नहीं होगा। गौरतलब है कि सोसाइटी फॉर एनलाइनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन की ओर से एक याचिका दायर की गई थी, जिस पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। याचिका में एनजीओ का आरोप था कि बाल विवाह निषेध कानून को शब्दशः लागू नहीं किया जा रहा है। यह याचिका साल 2017 में दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने करीब 7 साल बाद अब जाकर अपना फैसला सुनाया है।

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