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"COVID-19 : चीन पर अमेरिकी अदालत का 24 अरब डॉलर का जुर्माना"

Washington DC : एक अमेरिकी अदालत ने चीन को कोविड-19 महामारी से जुड़े तथ्यों को छिपाने का दोषी ठहराते हुए उस पर 24 अरब डॉलर (लगभग 2 लाख करोड़ रुपये) का भारी भरकम जुर्माना लगाया है। इस मामले में अमेरिकी जज ने कहा कि चीन ने महामारी की शुरुआत में जरूरी जानकारी छुपाई, जिससे वायरस पूरी दुनिया में तेजी से फैला और लाखों लोगों की जान चली गई।

 

क्या है मामला?

 

 

अमेरिका के मिसौरी राज्य की एक अदालत में यह मामला 2020 में दायर किया गया था। मिसौरी सरकार ने चीन पर आरोप लगाया था कि उसने कोविड-19 से जुड़ी अहम जानकारियां छुपाईं, जिससे दुनिया भर में लाखों लोग प्रभावित हुए और वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान हुआ। अदालत में पेश किए गए सबूतों के अनुसार, चीन की सरकार और वहां की स्वास्थ्य एजेंसियों ने शुरुआती दिनों में वायरस की गंभीरता को छुपाया और सही समय पर दुनिया को आगाह नहीं किया। इसके कारण अन्य देशों को महामारी से निपटने के लिए पर्याप्त तैयारी का समय नहीं मिला।

 

अमेरिकी अदालत का फैसला

 

मामले की सुनवाई के बाद अमेरिकी जिला जज ने चीन को दोषी करार देते हुए 24 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया। जज ने अपने फैसले में कहा कि चीन ने कोविड-19 के प्रसार को रोकने में लापरवाही बरती और जरूरी जानकारी साझा न करके वैश्विक स्वास्थ्य संकट को बढ़ावा दिया।

 

अमेरिका में कोविड-19 का प्रभाव

  

 

अमेरिका उन देशों में से एक था, जहां कोविड-19 का सबसे ज्यादा असर हुआ। वहां लाखों लोगों की मौत हुई और अर्थव्यवस्था को भी गहरा झटका लगा। मिसौरी सरकार ने दावा किया कि चीन की लापरवाही के कारण ही अमेरिका को इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

 

चीन की प्रतिक्रिया

 

इस फैसले पर चीन की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई है। चीन सरकार ने इसे राजनीति से प्रेरित और आधारहीन करार दिया। चीन का कहना है कि उसने महामारी की शुरुआत में ही उचित कदम उठाए और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को समय पर जानकारी दी।

 

क्या जुर्माना वसूला जा सकेगा?

 

हालांकि, यह साफ नहीं है कि अमेरिका चीन से यह जुर्माना वसूल पाएगा या नहीं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का मानना है कि यह फैसला प्रतीकात्मक ज्यादा है, क्योंकि अमेरिका चीन की संप्रभुता को सीधे प्रभावित नहीं कर सकता।

 इस फैसले ने फिर से कोविड-19 की उत्पत्ति और चीन की भूमिका को लेकर बहस छेड़ दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस फैसले पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की क्या प्रतिक्रिया रहती है और क्या अमेरिका इसे लागू करने के लिए कोई और कदम उठाता है।

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