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Holi Festival 2025 :  2025 में कब मनाया जाएगा रंगों का त्यौहार, जानें क्या है होली के पर्व की मान्यता

Holi Festival 2025 : 2025 में कब मनाया जाएगा रंगों का त्यौहार, जानें क्या है होली के पर्व की मान्यता

Holi Festival 2025 :   हिंदू धर्म में हर त्यौहार की अपनी-अपनी मान्यता होती है और उससे कई कहानियां भी जुड़ी होती है। ऐसे ही रंगों का त्यौहार होली, सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। भारतीय संस्कृत्ति में पर्व का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है, होली का त्यौहार भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद से जुड़ा हुआ है। वहीं देश के विभिन्न हिस्सों में इस पर्व को कई नाम एवं तरीकों से मनाया जाता है। आइए जानते है इस पर्व के जुड़ी मान्यताओं, इतिहास और Holi 2025 Date के बारें में-

 

कब मनाया जाता है होली का पर्व (Holi Festival 2025 )
रंगो का यह पवित्र त्यौहार वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला खुशी का पर्व है। वहीं हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार (Holi Festival 2025) कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन तक मनाया जाता है। बता दें कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन रंगों वाली Holi Festival मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं और होली की बधाई देते हैं। इसी के साथ ही इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है इसलिए इस पर्व को धूमधाम से पूरे देश में मनाया जाता है।

 

Holi Festival 2025 :  2025 में कब मनाया जाएगा रंगों का त्यौहार, जानें क्या है होली के पर्व की मान्यता

Holi Festival से जुड़ा इतिहास


पहले के समय में होली (Holi Festival) को होलाका के नाम से जाना जाता था । खुशियों का यह त्यौहार भगवान श्री कृष्ण और भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद से जुड़ा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली वह दिन होता है जब होलिका, जिसे अग्नि में अखंड रहने का वरदान प्राप्त था। कहा जाता है कि- उन्होंने प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में प्रवेश किया था, परन्तु प्रह्लाद को अग्नि से किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ था। मान्यता है कि- हिरण्यकशिपु एक प्राचीन समय का राजा था, जो हमेशा अमर रहने का दावा करता था और लोगों से भगवान के रूप में पूजने की मांग भी करता था। उनका पुत्र प्रह्लाद, जो भगवान विष्णु की पूजा करने के प्रति अत्यधिक समर्पित था इसलिए हिरण्यकशिपु इस बात से क्रोधित था कि उसका पुत्र उसके स्थान पर इस भगवान की पूजा करता था। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने बेटे प्रह्लाद को यातनाएं देता था, इसी के चलते एक दिन उन्हें मारने का प्रयास करते हुए उन्होंने अपनी बहन होलिका से कहा कि- वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करें, जिसके परिणामस्वरूप होलिका जल कर मर गईं परन्तु भक्त प्रह्लाद बच गए। कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप की क्रूरता को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप को समाप्त कर दिया। तभी से होलिका दहन का प्रचलन शुरू हुआ और होलिका की अग्नि में बुराइयों के समाप्त होने के बाद खुशियां मनाने के लिए अगले दिन रंग खेलने की प्रथा शुरू हुई।
वहीं होली के पर्व (Holi Festival)  को भारत के राज्यों में भी अलग-अलग नामों से जाना जाता है-


बिहार और उत्तर प्रदेश :- बता दें कि- बिहार और उत्तर प्रदेश में होली को फगुआ, फाग और लठमार होली कहते है। खासकर मथुरा, नंदगांव, गोकुल, वृंदावन और बरसाना में इसकी धूम रहती है।


मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान :- मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होली वाले दिन होलिका दहन होता है, दूसरे दिन धुलेंडी मनाते हैं और पांचवें दिन रंग पंचमी मनाते हैं। यहां के आदिवासियों में होली की खासी धूम होती है।


महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा :- महाराष्ट्र में होली को फाल्गुन पूर्णिमा और रंग पंचमी के नाम से जाना जाता है। इसी के साथ गोवा के मछुआरा समाज इसे शिमगो या शिमगा कहते है। गोवा की स्थानीय कोंकणी भाषा में शिमगो कहा जाता है। गुजरात में गोविंदा होली की खासी धूम होती है।


हरियाणा और पंजाब :- इसी के साथ हरियाणा में होली को दुलंडी या धुलेंडी के नाम से जानते हैं और पंजाब में होली को होला मोहल्ला कहते हैं।


पश्चिम बंगाल और ओडिशा :- वहीं पश्चिम बंगाल और ओडिशा में होली को बसंत उत्सव और डोल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।

 

Holi Festival 2025 :  2025 में कब मनाया जाएगा रंगों का त्यौहार, जानें क्या है होली के पर्व की मान्यता

कर्नाटक और तमिलनाडु :- बता दें कि तमिलनाडु में होली को लोग कामदेव के बलिदान के रूप में याद करते है, इसीलिए यहां पर होली को कमान पंडिगई, कामाविलास और कामा-दाहानाम कहते हैं। इसी तरह कर्नाटक में होली के पर्व को कामना हब्बा के रूप में मनाते हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगना में भी ऐसी ही होली होती है।


मणिपुर और असम :- मणिपुर में इसे योशांग या याओसांग कहते है। यहां धुलेंडी वाले दिन को पिचकारी कहा जाता है। असम इसे फगवाह या देओल कहते है। त्रिपुरा, नगालैंड, सिक्किम और मेघालय में भी होली की धूम रहती है।


उत्तराखंड और हिमाचल :- होली को भिन्न प्रकार के संगीत समारोह के रूप में मनाया जाता है, जिसे बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली कहते है। यहां की कुमाउनी होली, होली प्रसिद्ध है।

 

Holi 2025 Date 
साल 2025 में Holi Festival फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार Holi 2025 पूर्णिमा तिथि 13 मार्च 2025 की सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर इस पर्व का आंरम्भ होगा, जो कि 14 मार्च 2025 की 12 बजकर 23 मिनट पर इसका समापन होगा। बता दें कि 13 मार्च को होलिका दहन रात 10 बजकर 30 मिनट बाद किया जाएगा और 14 मार्च को रगों से Holi 2025 खेली जाएगी। वहीं उदयातिथि के कारण होली 14 मार्च को है।


होलिका दहन की पूजा विधि

 

Holi Festival 2025 :  2025 में कब मनाया जाएगा रंगों का त्यौहार, जानें क्या है होली के पर्व की मान्यता

पंचांग के अनुसार होलिका दहन 13 मार्च 2025 को किया जाएगा। इसकी पूजा विधि के लिए दिन में सबसे पहले गोबर की होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाकर तैयार किया जाता है। उसके बाद पूजा की थाली में रोली, कच्चा सूत, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल आदि रखें। फिर पूजा स्थल पर एक कलश में पानी भरकर रख दें। वहीं ध्यान रहे की पूजा के दौरान आपको अपना मुख पूर्व या उत्तर की ओर रखना है। अब नरसिंह भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, चावल, मिठाई, फूल आदि अर्पित करें। इसके बाद होलिका दहन वाले स्थान पर जाकर होलिका की पूजा करें।
वहीं मान्यता है कि होलिका दहन की राख बहुत ही पवित्र होती है, होलिका दहन के बाद उसकी राख को ठंडा होने के बाद घर ले आना चाहिए। इसी के साथ होलिका दहन की राख को माथे पर लगाने से भाग्य और बुद्धि तेज होने की मान्यता भी है। होलिका दहन की राख घर में सुख समृद्धि के लिए भी अच्छी मानी जाती है, इस राख को लाल वस्त्र में बांधकर तिजोरी में रख देना चाहिए, इससे घर में कभी भी धन की कमी नहीं रहती है।


Holi पर बनने वाले पकवान

 

Holi Festival 2025 :  2025 में कब मनाया जाएगा रंगों का त्यौहार, जानें क्या है होली के पर्व की मान्यता

Holi के त्यौहार पर कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते है। इस पर्व के दिन नजदीक आते ही तैयारियों में जुट जाते है, वहीं त्यौहार पकवान के बिना हर पर्व अधूरा सा लगता है। ऐसे में होली के पर्व पर कई प्रकार के पकवान बनाए जाते है, दही वड़ा जो कि यूपी, बिहार और देश के अन्य कई हिस्सों में होली पर बनाने का रिवाज है, उड़द की दाल को पीसकर उसमें काली मिर्च, नमक और इलायची डाल कर इसे बनाया जाता है। होली बिना ठंडाई के भला कैसे मनाई जा सकती है, ठंडाई का स्वाद इस दिन रंग और उमंग को और भी बढ़ा देता है। आलू के गुटके, मालपुआ, कांजी वड़ा, गुजिया, पूरन पोली समेत कई तरह के पकवान बनाए जाते है।

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