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अयोध्या में राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा: एक ऐतिहासिक क्षण

अयोध्या में राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा: एक ऐतिहासिक क्षण

अयोध्या में आध्यात्मिक इतिहास का नया अध्याय

 

5 जून 2025 को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में एक ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन हुआ, जब पहली बार राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा विधिवत रूप से सम्पन्न हुई। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और विशेष पूजा-अर्चना की। पूरे मंदिर परिसर को दीपों और फूलों से सजाया गया था, जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया।

 

राम दरबार की मूर्तियों का निर्माण

 

राम दरबार की मूर्तियाँ 40 साल पुराने संगमरमर से बनाई गई हैं, जिन्हें तैयार करने में आठ महीने का समय लगा। मूर्तिकारों ने इस कार्य को अत्यंत श्रद्धा और समर्पण के साथ अंजाम दिया। दिलचस्प बात यह है कि मूर्तिकारों में से एक प्रतिदिन दो घंटे प्रभु श्रीराम की परिक्रमा करते थे, जिससे उनकी कला में भक्ति का समावेश और अधिक गहरा हो गया।

 

प्राण प्रतिष्ठा का धार्मिक महत्व

 

प्राण प्रतिष्ठा एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें मूर्तियों में देवता का वास स्थापित किया जाता है। यह प्रक्रिया मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करती है और भक्तों के लिए एक दिव्य अनुभव प्रदान करती है।

 

मंदिर परिसर की विशेषताएँ

 

राम मंदिर का निर्माण पारंपरिक नागर शैली में किया गया है। मंदिर की लंबाई 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊँचाई 161 फीट है। मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप स्थापित है, जबकि प्रथम तल पर राम दरबार स्थित है। मंदिर में कुल 392 खंभे और 44 द्वार हैं। मंदिर परिसर में पांच मंडप—नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप—निर्मित किए गए हैं। इसके अलावा, मंदिर में प्रवेश के लिए 32 सीढ़ियाँ चढ़कर सिंहद्वार से प्रवेश करना होता है।

 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति

 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अवसर पर मंदिर में पूजा-अर्चना की और राम दरबार की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की। उनकी उपस्थिति ने इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। उन्होंने अयोध्या की सांस्कृतिक और धार्मिक गरिमा को पुनः स्थापित करने की दिशा में इस आयोजन को एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस आयोजन ने न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व प्राप्त किया, बल्कि यह अयोध्या की सांस्कृतिक धरोहर और भारतीय परंपराओं के संरक्षण का प्रतीक भी बना। भक्तों के लिए यह एक दिव्य अनुभव था, जो लंबे समय तक याद रहेगा।

 

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